[Reader-list] Feel free, Mr. Husain. Go paint Qatari leaders
Prakash K Ray
pkray11 at gmail.com
Thu Mar 11 03:13:49 IST 2010
कला में राष्ट्रीयता के मूल्य का प्रश्न का समाधान शायद असंभव है. - एडवर्ड
हॉपर, 'अमेरिकी' चित्रकार.
अपनी राष्ट्रीयता, भाषा और व्यक्तिगत रुचियों के बावजूद कुछ ऐसी वास्तविकताएं
हैं जिससे हम सभी का वास्ता है. जैसे हमें भोजन की आवश्यकता होती है, वैसे ही
हमें भावनात्मक पोषण- दूसरों से प्रेम, दया, प्रशंसा और सहयोग- की आवश्यकता
होती है. -जे डोनाल्ड वाल्टर्स (स्वामी क्रियानंद), परमहंस योगानंद के शिष्य,
मूलतः रोमानियाई, अब भारत में.
बरसों पहले एम एफ़ हुसैन से आर्ट टुडे गैलेरी में मिला था. उस समय माधुरी
दीक्षित पर आधारित चित्रों की प्रदर्शनी चल रही थी. पत्र-पत्रिकाओं में इस
चित्र श्रृंखला को लेकर काफ़ी चर्चा थी. माधुरी तो सुपरस्टार थीं ही. और फिर
हुसैन!! दोस्तों के साथ चित्रों को नज़र दौड़ाते, उनकी कीमत का अंदाजा लगाते, एक
बड़ी सी पेंटिंग के पीछे बैठे हुसैन को बीच-बीच में निहारते हम गैलेरी का चक्कर
लगा रहे थे और ऑटोग्राफ लेने की जुगत लगा रहे थे. तभी एक पेंटिंग पर नज़र पड़ी.
अज़ीब से भाव उमड़े. कला की विराट दुनिया से एक बड़े परिचय का वह क्षण था. उस
चित्र में हुसैन की माँ देहरी में रखा लालटेन जला रही हैं और शिशु हुसैन अपने
दादा के साथ खाट पर खेल रहे हैं. हुसैन की माँ के चेहेरे पर माधुरी दीक्षित का
अक्स है. हुसैन जब डेढ़ साल के थे, माँ चल बसी थीं. शायद याद के किसी कोने में
हुसैन ने यह चित्र बचपन में ही उकेर कर रख दिया था. जिस माधुरी को हुसैन ने
नाचते, खेलते, विक्टोरिया के रूप में, उत्तेजक मुद्राओं में, शहरी युवती, गाँव
की गोरी आदि छवियों में रंगा था, उसी माधुरी को अपनी माँ के रूप में भी चित्रित
किया था.
कुछ साल बाद कहीं पढ़ा कि कब हुसैन ने जूता-चप्पल पहनना छोड़ दिया. बात 1964 की
है. हिंदी के कवि मुक्तिबोध उस साल 11 सितम्बर को चल बसे थे. हुसैन अपने मित्र
के अंतिम संस्कार के लिये शमशान घाट गए. विदाई दी और लौट आये. लौटते समय घाट के
बाहर रखा जूता नहीं पहना और अब तक नहीं पहना.
पचास के दशक में मुक्तिबोध की किताब का विरोध हुआ था और मध्य प्रदेश की
तत्कालीन सरकार ने उस किताब को पाठ्यक्रम से वापस ले लिया था. तब मुक्तिबोध ने
कहा था: ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन ये फ़ासीवादी ताक़तें हमारी कलम छीन लेंगी.
अफ़सोस तो मुझे है कि हुसैन एक अर्थ में पराये हो गए हैं आज, लेकिन मन में संतोष
भी है कि उनकी उंगलियाँ और उनकी कूची सलामत हैं.
प्रकाश
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