[Reader-list] शंकरबिगहा में क्या किसी ने किसी को नहीं मारा था?

Asit Das asit1917 at gmail.com
Thu Jan 15 23:59:12 CST 2015


शंकरबिगहा में क्या किसी ने किसी को नहीं मारा था?
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*वरिष्ठ पत्रकार रजनीश उपाध्याय सोलह साल पहले के उस दिन को याद कर रहे हैं,
जब जहानाबाद (बिहार) के शंकर बिगहा गांव में सामंती रणवीर सेना ने 23 लोगों की
हत्या कर दी थी. मरने वालों में दलित और अत्यंत पिछड़ी जाति के लोग थे, जिनमें
अनेक महिलाएं और बच्चे शामिल थे. 13 जनवरी 2015 को जिला अदालत ने इस मामले के
सभी आरोपितों को बरी कर दिया है. अदालत का यह फैसला बिहार और देश की अनेक
अदालतों में दलितों के जनसंहारों के मामले में आने वाले फैसलों की ही एक और
कड़ी है – जिसमें एक लंबी चली हुई थका देने वाली न्यायिक प्रक्रिया आखिरकार
सभी आरोपितों को बरी करने में पूरी होती है. तर्क भी हमेशा की तरह वही - सबूत
नहीं थे. लेकिन अगर अपराध हुआ है तो जांच कर के सबूत लाने की जिम्मेदारी और
सजा को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी किसकी है? यह रिपोर्ट आज के *प्रभात खबर* में
प्रकाशित हुई है.*

वह 26 जनवरी की सर्द भरी सुबह थी. झंडे-पताकों से सजे स्कूलों व सरकारी भवनों
में झंडोत्तोलन की तैयारी थी. लाउडस्पीकर पर देशभक्ति गीत गूंज रहे थे - ऐ
मेरे वतन के लोगो...

इधर, 50वें गणतंत्र दिवस की चहल-पहल से अलहदा शंकर बिगहा की गलियों में ‘गम’
था, तो उससे कहीं अधिक ‘गुस्सा’ था. ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी (साल 1999) की
रात रणवीर सेना ने दलितों और अति पिछड़ों की बहुलतावाले इस गांव के 23 लोगों
को गोलियों से छलनी कर दिया था. इस घटना की खबर देर रात पटना पहुंची थी और
दूसरे दिन अहले सुबह (26 जनवरी को) पत्रकारों की अलग-अलग टोलियां इस घटना के
कवरेज के लिए शंकर बिगहा के रास्ते थीं. तब सूचना और संचार के माध्यम आज की
तरह अत्याधुनिक नहीं थे. टीवी चैनल भी कम थे. *प्रभात खबर* की ओर से कवरेज के
लिए मुझे भेजा गया था.

पटना से औरंगाबाद जानेवाली सड़क पर वलिदाद के नजदीक एक छोटी नहर के उस पार
शंकर बिगहा जाने के लिए हमलोगों को कुछ दूर पैदल भी चलना पड़ा. यह गांव रणवीर
सेना की सामंती क्रूरता की दुखद कहानी कह रहा था. एक झोंपड़ी में चार शव पड़े
थे और उनके बीच एक नन्हीं बच्ची (करीब चार साल की) अल्युमिनियम की थकुचायी
थाली में भात खा रही थी. शायद मौत के पहले रात में मां ने अपने बच्चों के लिए
थाली में भात परोसा था. परिवार में कोई नहीं बचा था. यह दृश्य देख हम और हमारे
साथी पत्रकार अंदर से कांप गए. डबडबायी आंखों से सब एक-दूसरे की ओर देख रहे
थे, लेकिन मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था. वह बच्ची कभी कैमरे की ओर
देखती, तो कभी अपनी थाली की ओर.

इस घटना में जो 23 लोग मारे गये थे, उनमें पांच महिलाएं और सात बच्चे थे. यह
वहशीपन की पराकाष्ठा थी कि 10 माह के एक बच्चे और तीन साल के उसके भाई को भी
नहीं बख्शा गया.

हम सब आगे बढ़े, तो एक जगह चार-पांच शव खटिया पर रखे हुए थे-  लाल झंडे से
लिपटे हुए. भाकपा माले के नेता रामजतन शर्मा, रामेश्वर प्रसाद, संतोष, महानंद
समेत कई अन्य सुबह में ही पहुंच चुके थे. मुख्यमंत्री (तत्कालीन) राबड़ी देवी
और लालू प्रसाद गांव में पहुंचे, तो शवों की दूसरी तरफ खड़े लोगों ने नारे
लगाने शुरू कर दिए- रणवीर सेना मुरदाबाद. मुआवजा नहीं, हथियार दो. लालू प्रसाद
ने समझाने की गरज से कुछ कहा, तो शोर और बढ़ने लगा. तब तक राबड़ी देवी ने एक
महिला को बुलाया और उससे कुछ पूछना चाहा. गुस्से से तमतमायी उस महिला के शब्द
अब तक मैं नहीं भूल पाया हूं. उसने कहा - हमको आपका पैसा नहीं चाहिए. हमलोगों
को हथियार दीजिए, निबट लेंगे. तब तक हल्ला हुआ कि पुलिस ने बबन सिंह नामक
व्यक्ति को पकड़ा है. गांव के लोग उसे सुपुर्द करने की मांग करने लगे. बोले,
हम खुद सजा दे देंगे. डीएस-एसपी ने बड़ी मुश्किल से लोगों को शांत किया. मौके
पर लालू प्रसाद व राबड़ी देवी ने विशेष कोर्ट का गठन कर छह माह में अपराधियों
को सजा दिलाने का एलान किया था.

गांव के एक व्यक्ति रामनाथ ने हमें बताया था कि यदि बगल के धेवई और रूपसागर
बिगहा के लोगों ने गोहार (हल्ला) नहीं किया होता, तो मरनेवालों की संख्या और
भी ज्यादा होती. शंकर बिगहा के पूरब में धोबी बिगहा गांव है, जहां के 21 लोग
इस जनसंहार में अभियुक्त बनाये गये थे. पूरे गांव में एक को छोड़ बाकी सभी
मकान कच्चे या फूस के थे, जो यह बता रहा था कि मारे गये सभी गरीब और भूमिहीन
थे. आततायी ललन साव का दरवाजा नहीं तोड़ पाये, क्योंकि एकमात्र उनका ही मकान
ईंट का था, जिसके दरवाजे मजबूत थे. उन्होंने पत्रकारों को बताया था - मैंने
तीन बार सीटी की आवाज सुनी और फिर रणवीर बाबा की जय नारा लगाते सुना.

घटना के बाद ऐसी चर्चा रही किशंकर बिगहा में नक्सलवादी संगठन पार्टी यूनिटी का
कामकाज था, इसीलिए रणवीर सेना ने इसे निशाना बनाया. एक चर्चा यह भी थी कि यह
नवल सिंह, जो मेन बरसिम्हा हत्याकांड का अभियुक्त था, की हत्या का बदला था. वह
दौर मध्य बिहार के इतिहास का एक दुखद व काला अध्याय था, जिसमें राज्य ने शंकर
बिगहा के पहले और बाद में भी कई जनसंहारों का दर्द झेला. दिसंबर, 1997 को
लक्ष्मणपुर बाथे और नौ फरवरी, 1999 को नारायणपुर जनसंहार हुआ. इसके पहले 1996
में भोजपुर के बथानी टोला में 23 लोग मारे गये थे. सभी कांडों को अंजाम देने
का आरोप रणवीर सेना पर लगा था. लेकिन, बाथे और बथानी टोला के अभियुक्तों को
हाइकोर्ट ने बरी कर दिया, जबकि शंकर बिगहा कांड के आरोपित निचली अदालत से ही
बरी कर दिये गये. अदालत ने माना कि आरोपितों के खिलाफ साक्ष्य नहीं थे. अदालत
का फैसला तो आ गया, लेकिन यह सवाल अनुत्तरित रहा कि फिर शंकर बिगहा में 25
जनवरी, 1999 की रात जिन 23 लोगों के हत्यारे कौन थे? क्या वे कभी पकड़ में आ
पायेंगे? आखिर यह जवाबदेही कौन लेगा? ठीक यही सवाल बाथे और बथानी टोला जनसंहार
के पीड़ित पहले पूछ चुके हैं, जिनका जवाब अब तक उन्हें नहीं मिला है.

*(साथ में दी गई तस्वीरें क्रमश: शंकर बिगहा और लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहारों की
हैं.*)


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